अखंड सुहाग के लिए महिलाएं रखतीं हैं करवाचौथ व्रत।
पति के हाथ से पीती हैं जल, चन्द्रमा को दिया जाता है अर्घ्य,
पति से भावनात्मक अनुराग का पर्व है ‘‘करवाचौथ’’
नारायण सिंह रावत
सितारगंज। करवा चौथ का दिन सुहागिन महिलाओं के लिए खास होता है। महिलाएं अपने अखंड सुहाग की कामना करते हुए करवाचौथ का व्रत करती हैं। रात में महिलाएं पति का मुंह छलनी में देखती हैं। इसके बाद अनं और जल ग्रहण करतीं हैं। यह व्रत चूड़ियों के पर्व के नाम से भी प्रसिद्ध है।
मान्यता के अनुसार सुहागिन महिलाएं प्रातः काल से ही निर्जला व्रत रखकर संध्याकाल में कथा का श्रवण करती हैं तथा रात्रि में चंद्रमा को अर्ध्य देकर अन्न-जल ग्रहण करती हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने पर पुत्र, धन और सौभाग्य की प्रप्ति होती है। करवाचौथ वैसे पूरे भारत का पर्व है, लेकिन उत्तर भारत में यह बड़ी प्रमुखता से मनाया जाता है। प्रत्येक क्षेत्र में यह विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश में यह पर्व
करवाचौथ के रूप में ही मनाया जाता है। जबकि, गुजरात व दक्षिण भारत के राज्यों तमिलनाडु आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में सुहाग पर्व व अन्य नामों से मनाया जाता है, परंतु सबका ध्येय एक ही होता है। पति की दीर्घायु और खुशहाल जीवन की कामना।
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इसमें बहू सुहाग की सामग्री, चूडियां, सिंदूर, शीशा, कंघा, काजल, रुपये आदि रखकर व्रत रखती हैं। इसे एवरत-जेवरत कहा जाता है, इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके सुबह ही पूजा कर लेती हैं। पूजा करने के बाद पूरी रात जागती हैं। इस दौरान झपकी आने पर भी पति की आयु कम होना माना जाता है। रातभर डांडिया और कहानियों का दौर चलता है। हरियाणा और राजस्थान में ज्यादातर नवविवाहिताएं पहला करवाचौथ पीहर में मनाती हैं। इस दिन उनके खाने का सामान, वस्त्र और गहने भी सुसराल से आते हैं। पूजा करने के बादबायना ससुराल के लोगों को देती हैं। ससुराल के लोग इसके बदले में बहू को अपनी सामर्थ्य अनुसार उपहार देते हैं। चंद्रमा को अर्ध्य देकर अनजल ग्रहण करने का रिवाज है। यह त्योहार भले ही विविध नामों और रूपों से मनाया जाता है लेकिन यह वास्तव में पति से भावनात्मक अनुराग का एक विशेष धार्मिक अवसर है।
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देवी पार्वती की आराधना होती है
यह व्रत कार्तिक मास की चतुर्थी को होता है। यह पार्वती देवी की आराधना का पर्व है। पार्वती देवी को महिलाओं के अखंड
सुहाग का प्रतीक माना गया है। इस दिन महागोरी के साथ महालक्ष्मी को भी पूजा
की जाती है।